खेती

कश्मीर के सेब किसान भारत की रेलवे योजना से हुए नाराज़, कहा हमने पीढ़ियों से जो काम किया है, उसकी भरपाई कोई भी मुआवजा नहीं कर सकता।

भारत की सरकार कश्मीर के सुदूर क्षेत्र में रेलवे परियोजना लाना जा रही है. लेकिन इस परियोजना से सुदूर क्षेत्र के किसान काफी डर गए हैं. क्योंकि माना जा रहा है ये परियोजना उनके बाग-बगीचों को पूरी तरह नष्ट कर देगी।

जब स्कूल की छात्रा मेहविश मुजफ्फर परीक्षा देने गई तब उसके मोबाइल फोन पर एक संदेश आया जिसे पढ़कर उसे जानकारी प्राप्त हुई कि उसके गृह गांव रेशीपोरा में सर्वेक्षक आए हुए हैं। वे 27 किलोमीटर (18 मील) की रेलवे लाइन के निर्माण के लिए सेब के खेतों का सीमांकन करने के लिए वहां गए थे, जो कश्मीरी शहरों अवंतीपोरा और शोपियां को जोड़ेगी।

जब इस बात का पता उनकी मां दिलशादा बेगम को चला कि रेलवे परियोजना की टीम उनके बगीचों की तरफ जा रही है. तो वह उनकी रक्षा करने के लिए अपने बगीचों पर पहुंच जाती हैं.जिसपर वह दिलशादा लंबे समय से खेती कर रही हैं। दिलशादा ने रोते हुए कहा कि यह जमीन हमारी विरासत है जिसपर हम बहुत समय से खेती करते आ रहे हैं. जिससे हमें सालाना लगभग 1,200,000 रुपए (14,000 डॉलर, 13,500 यूरो) की आसानी से हो जाती है जिससे करके हम अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं यही जमीन हमारा सब कुछ है।

आपको बता दें कि दिलशादा और उनके पति अपने बाग-बगीचों से ही अपनी 4 बेटियों का भरण-पोषण करते हैं. इस क्षेत्र में दिलशादा अकेली नहीं हैं बल्कि 300 और भी ऐसे ही किसान परिवार हैं जो खेती करके अपना परिवार को संभाल रहे हैं.किसानों ने बताया कि अगर हमारे बगीचों पेड़ो को उखाड़ दिया तो हमारे पास कुछ नहीं बचेगा हमारे बाग -बगीचे हमारा सब कुछ हैं। गांव के ही एक अधिकारी निसार अहमद ने बताया कि “लाइन का अंतिम संरेखण भारत की संघीय सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा, लेकिन हम निवासियों की चिंताओं को दूर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी ने कहा कि ये आदेश सरकार का है जिसे हमें इसका पालन करना होगा। आगे अधिकारी शेखर ने बताया कि हमारी टीम गांव के कम पेड़ों को काटने पर ज्यादा ध्यान दे रही है.उन्होंने कहा कि कुछ पेड़ों को काटने की ज्यादा जरूरत है .उन्होंने आगे कहा कि हम आप सबको विश्वास दिलाते हैं कि बाद में पेड़ लगाए जाएंगे और अगर रेलवे मार्ग निकल गया तो रेलवे से अर्थव्यवस्था और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

दिसंबर 2023 में भारत ने कश्मीर के भीतर अवंतीपोरा-शोपियां सहित पांच नई रेलवे लाइनों को मंजूरी दी। यह भारत नियंत्रित कश्मीर और प्रमुख भारतीय शहरों के बीच यातायात संपर्क को बढ़ावा देने की एक बड़ी योजना का हिस्सा है, और इसमें दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे पुल का निर्माण भी शामिल है। आपको बता दें कि रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि अगर रेलवे मार्ग बनाने के बाद अच्छी कनेक्टिविटी आयेगी और पर्यटन को इससे बढ़ावा मिलेगा और साथ ही इससे क्षेत्र के लोगों को भी व्यापार को लेकर लाभ होगा।

आपको बता दें कि ये घने जंगलों वाला क्षेत्र है और ये क्षेत्र कश्मीर के सेब उत्पादन का केंद्र माना जाता है ये क्षेत्र 35 लाख लोगों को रोजगार दे रहा है यहां के सेब किसान खेती करके अपना घर चला रहे हैं. आपको बता दें कि यह क्षेत्र कश्मीर के सकल घरेलू उत्पाद में 8% से अधिक का योगदान देता है। हमें 56 वर्ष के मोहम्मद युसूफ ने बताया कि शोपियां ज्यादातर सेब की खेती पर निर्भर है.मोहम्मद युसूफ ने कहा कि अच्छा होगा पहले हमें मार दो फिर काम शुरू करना। आगे किसानों ने बताया कि ये परियोजना बगीचों को उखाड़ना न केवल यहां के पर्यावरण के लिए खतरा साबित हो सकती है।

आगे सेब किसान बताते हैं कि पिछले कुछ समय से कश्मीर बेरोजगारी के संकट का सामना कर रहा है इस साल जुलाई में जम्मू कश्मीर के क्षेत्र में लगभग बेरोजगारी दर 25% थी लेकिन कश्मीर क्षेत्र में सेब के कम उत्पादन की वजह से बेरोजगारी दर बढ़कर 27% हो गई है ऐसी स्थिति में ये बाग-बगीचे ही हमारा एक मात्र सहारा हैं अर्थशास्त्र में डीग्री पूरी कर चुके बानी कहतें हैं कि हमारे क्षेत्र नौकरी तो है नहीं और ऐसे में हमारा आखिरी विकल्प भी हमसे छीन रहे हैं।

अपनी मास्टर डिग्री पूरी करने वाले वानी ने कहा, “नौकरियां तो हैं नहीं, फिर भी वे मेरा आखिरी विकल्प भी छीन रहे हैं।”

क्षेत्र के भविष्य पर विवाद

अधिकारी शेखर कहते हैं क्षेत्रों के लोगों इस बात का भी ध्यान देना चाहिए कि रेलवे मार्ग से आप लोगों को आर्थिक लाभ होगा उन्होंने बताया कि हमारी कंपनी आप लोगों को अच्छा मुआवजा देगी.अधिकारी शेखर आगे कहते हैं कि कई बार ऐसा होता है सरकार मुआवजा पैकेज के साथ नौकरी की भी पेशकश करती है।

कश्मीर के सेब किसानों ने मुआवजे पर मिलने वाला पैसा लेना से भी साफ इंकार कर दिया है.किसानों का कहना है कि हमने पीढियों से जो काम किया है उसकी भरपाई ये मुआवजा पूरी नहीं कर सकता है ये बाग-बगीचे नहीं बल्कि हमारी जान हैं।

सेब किसानों को इस बात का डर सताया जा रहा है यदि हमसे हमारी ये जमीन ले ली गई तो हमारे पास पीछे के सभी रास्ते बंद हो जायेंगे हमारे पास पीछे मुड़ने के लिए कुछ नहीं बचेगा.आपको बता दें कि अप्रैल के महीने में किसानों ने इस परियोजना का विरोध किया था तब किसानों ने सफेद कफन ओढ लिया था।

किसान मोहम्मद युसुफ ने बताया कि पहले हमनें सुना था कि जमीन का 300 फीट क्षेत्र ही हमसे लिया जायेगा लेकिन अब सुनने में आ रहा है कि 900 फीट है मोहम्मद युसुफ बोल रहे कि ऐसा लगता है कि हमारे साथ धोखा हो रहा है। आपको बता दें कि कश्मीर के सेब किसानों में इस समय काफी गुस्से का महौल बना हुआ है.एक बगीचे के मालिक दिलशादा ने बगीचे की तरफ देखा और भावुक होकर कहा ये जमीन हमारी है हम इसे बिना लड़े नहीं जाना देंगे।”

Sharik Malik

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