आप सभी जानते होंगें कि बुंदेलखंड जल संकट के नाम से भी जाना जाता है. और हाल ही में यहां पानी की समस्या बहुत ही ज्यादा हो गई है. अब यहां की महिलाएं पानी की बूंद बूंद के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिए मजबूर हो चूकी हैं. बुंदेलखंड की महिलाएं इस चुनौती को मात देने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं।
आपने कहानियां तो बहुत सुनी होंगी लेकिन आज हम आपको ऐसी महिलाओं की कहानी बताने जा रहे हैं. जिसे पढ़कर इन महिलाओं की तारीफ करे बिना आप रह नहीं सकते हैं. ये कहानी है. उन महिलाओं की जिन्होंने एक बड़े़ से पहाड़ को काटकर पानी की बूंद बूंद को तरस रहा सूखे हुए गांव में पानी पहुंचाने की पहल की है. जिससे गांव में भौगोलिक व सामाजिक परिदृश्य में अकल्पनीय बदलाव आ रहे हैं।
ये बाहदुर महिलाएं मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के पास छोटे से गांव अगरौठा में रहती हैं. आपको बता दें कि यह गांव उत्तर प्रदेश के और मध्य प्रदेश की सीमा पर बुंदेलखंड के क्षेत्र में मौजूद है।

पहाड़ काटने वाली किरण बतातीं हैं कि मुझे रोजाना 2 से 2.5 किमी पैदल चलकर पानी लाने के लिए जाना होता था. और ऐसे में जो ऊंची जाति के लोग थे हमें टेंकरों से पानी भरने नहीं देते थे।
आपको बता दे कि पहाड़ काटने वाली किरण एक जल सहेली हैं. ऐसे ही पूरे बुंदेलखंड में लगभग 1.000 जल सहेलियां हैं जो जल संरक्षण पर्यवरण जैसे मुद्दों पर अपनी भूमिका निभा रही हैं. आपको बता दें कि इन सभी जल सहेलियों को ‘परमार्थ समाज सेवी संस्थान ने प्रशिक्षित किया है।
आज के समय में ये जल सहेलियां बुंदेलखंड के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं. ये सभी जल सहेलियां कड़ी मेहनत करके सूख चुके क्षेत्रों में पानी स्त्रोत को पुनरुद्धार के लिए कड़ी मेहनत करके ये अपनी भूमिका निभाती हैं. जिसके लिए एक पानी पंचायत का आयोजन भी किया जाता है।
बता दें कि 2019 में बुंदेलखंड के अगरौठा गांव में एक आयोजन किया गया था. जिसके बाद ये निष्कर्ष निकला था कि गांव में जल की समस्या वर्षा जल से ही सुलझा जा सकती है. गांव में ही एक तालाब था जो ज्यादातर सूखा ही रहता है।
बुंदेलखंड का ये सूखे से प्रभावित गांव अगरौठा एक जंगली पहाड़ों के किनारे पर बसा हुआ है और ऐसे में जो बारिश का पानी इन पहाड़ों गिरता और जंगलों से जो पानी आता है. तो तलाब के पीछे दो पहाड़ियों के बीच में से होकर गुजर जाता था.लेकिन तालाब के अंदर बारिश का पानी नहीं आता था. जिसे देखकर जल सहेलियों के मन में आया कि जब हम इस पहाड़ी को काट देंगे तो बारिश का पानी इसमें आ सकता है. फिर क्या था जल सहेलियों ने मिलकर इस काम को अंजाम दे दिया पहाड़ को काट दिया और बांध बनाकर बारिश के पानी को मोड़कर पानी सूखे हुए तालाब तक पहुंचा दिया।
अगरौठा गांव की जल सहेलियों की बहादुरी देखकर हर कोई तारीफ कर रहा है. पूरे बुंदेलखंड में हर कोई महिला सशक्तिकरण की मिसाल दे रहा है. और इतना ही नहीं बल्कि अब बुंदेलखंड के अन्य जिलों में भी जल पंचायत का आयोजन किया जा रहा है.अब इन जल सहेलियों को इनकी बहादुरी व सरहानीय प्रयासो के लिए इन्हें अब भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के द्वारा स्वच्छ सुजल शक्ति सम्मान पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया गया।
अब इन जल सहेलियों के मधयम से गांव के अंदर एक किचन गार्डन स्थान और गांव के अंदर कई नदियों पर स्टॉप डैम और काफी गांवों को जल का पुनरुद्धार किया जा रहा है. आपको बता दें कि बुंदेलखंड में अब तक इन जल सहेलियों ने 2256 हेक्टेयर भूमि को 10.121 बिलियन लीटर जल उपलब्ध कराने का काम किया जा चुका है।
और इतना ही नहीं जो कभी इन जल सहेलियों को ऊंची जाति के लोग अपने टेंकरों से पानी नहीं भरने देते थे. आज ये महिलाएं सभी वर्गों की जाति के लोगों को फायदा पहुंचा रही है. इन जल सहेलियों ने बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों की मदद की है. आज वही ऊंची जाति के लोग भी इनका समर्थन कर रहे हैं. और ये जल सहेलियां अब गांव के अंदर प्रधान व जिला परिषद जैसे पदों के लिए चुनीं भी जा रही हैं।