भारत में बाघों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2014 से लेकर साल 2024 तक करीब 65 फीसदी बाघ बढ़े हैं. सरकारी मंत्रालय, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की मानें तो, 2014 में देश के अंदर कुल बाघों की संख्या केवल 2226 थी, जिसमें बढ़ोतरी होने के बाद वह संख्या 3682 हो गई है. दिलचस्प बात ये है कि बाघों की संख्या के साथ-साथ दुनिया में वन्य जीवों के संरक्षण कार्यक्रम में भी भारत का डंका बज रहा है। आकड़ों के अनुसार दुनिया के 70 प्रतिशत से अधिक जंगली बाघों का घर भारत ही है. अन्य देशों के मुकाबले भारत में तेजी से वन्य जीवों के संरक्षण पर काम हुआ.
देश में किस साल कितने बाघ बढ़े, कुछ इस प्रकार है.
साल | बाघ की संख्या |
2006 | 1411 |
2010 | 1706 |
2014 | 2226 |
2018 | 2967 |
2023 | 3682 |
सरकार का अन्य वन्य जीवों के संरक्षण पर भी है फोकस
भारत सरकार बाघ के साथ-साथ अन्य वन्य जीवों के संरक्षण पर भी काम कर रही है. इसके लिए पिछले साल यानी अप्रैल 2023 में भारत सरकार ने इंटरनेशनल बिग कैट्स एलायंस यानी आईबीसीए की शुरुआत की, इसकी नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी थी. साथ ही इसकी शुरुआत बाघ, तेंदुए, शेर,हिम तेंदुए, चीता, जगुआर और प्यूमा, यानी बिग कैट्स के संरक्षण के लिए हुआ था. यह एलाइंस बाघ सहित अन्य बड़ी बिल्लियों और उनकी कई लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण में बड़ी भूमिका निभा रहा है.
आंकड़ों के अनुसार पिछले दस साल में भारत में न केवल बाघों की आबादी में बढ़ोतरी हुई है, बल्कि उन्हें अनुकूल वातावरण भी मिला है. दुनिया के केवल 2.4% भूमि क्षेत्र के साथ भारत, वैश्विक जैव विविधता में लगभग 8% योगदान देता है.
अन्य वन्य जीवों के संरक्षण पर भी फोकस
सरकार बाघ के साथ-साथ अन्य वन्य जीवों के संरक्षण पर भी काम कर रही है, इसके लिए पिछले साल यानी अप्रैल 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंटरनेशनल बिग कैट्स एलायंस यानी आईबीसीए की नींव रखी. इसकी शुरुआत बाघ, शेर, तेंदुए, हिम तेंदुए, चीता, जगुआर और प्यूमा, यानी बिग कैट्स के संरक्षण के लिए हुआ है. यह एलाइंस बाघ सहित अन्य बड़ी बिल्लियों और उनकी कई लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण में बड़ी भूमिका निभा रहा है.
आंकड़े बताते हैं कि पिछले दस साल में भारत में न केवल बाघों की आबादी में बढ़ोतरी हुई है, बल्कि उन्हें अनुकूल वातावरण भी मिला है.
बाघों के संरक्षण को लेकर कैसे शुरू हुआ काम?
भारत में सर्वप्रथम साल 1969 से वन्य जीवों के संरक्षण की दिशा में उस वक़्त की सरकार ने काम करना शुरू किया था. तब पहली बार भारत सरकार ने वन्य जीवों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया. जिसके बाद साल 1972 में वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट लागू किया गया. 1973 में केंद्र सरकार ने बाघ परियोजना शुरू किया, यह एक वन्य जीव संरक्षण पहल थी, जिसका प्राथमिक उद्देश्य टाइगर रिजर्व बनाकर बाघों की आबादी के प्राकृतिक आवासों में अस्तित्व और रख-रखाव को सुनिश्चित करना था.
बाद में साल 2006 में सरकार ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में तब्दीली की और वन्य जीवों के संरक्षण को और मजबूती प्रदान की. उस वक़्त देश में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) और वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की स्थापना हुई.
साल 2010 में पहली बार सरकार ने एलान किया कि हर 29 जुलाई को वर्ल्ड टाइगर डे (World Tiger Day) मनाया जाएगा. पिछले साल 2023 में पीएम मोदी ने इंटरनेशनल बिग कैट्स एलायंस यानी आईबीसीए की नींव रखी. इसमें उन देशों को शामिल किया गया, जहां वन्य जीवों की आबादी अच्छी है. इसके जरिए बाघों के साथ-साथ शेर, तेंदुए, हिम तेंदुए, चीता, जगुआर और प्यूमा, यानी बिग कैट्स के संरक्षण को लेकर सरकार ने तेजी से काम करना शुरू किया.
इस वक़्त भारत में 54 टाइगर हैं रिजर्व
साल 1973 में पहली बार सरकार ने टाइगर रिजर्व के गठन करने का ऐलान किया था, शुरुआती वक़्त में देशभर में केवल नौ टाइगर रिजर्व बनाए गए थे. इनमें कॉर्बेट (उत्तर प्रदेश), पलामू (बिहार), सिमिलिपाल (उड़ीसा), सुंदरवन (पश्चिम बंगाल), मानस (असम), रणथंभौर (राजस्थान), कान्हा (मध्य प्रदेश), मेलघाट (महाराष्ट्र) और बांदीपुर (मैसूर) शामिल है.
हाल ही में सरकार ने मध्य प्रदेश में वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व की घोषणा की है, इसी के साथ देश में अब कुल 54 टाइगर रिजर्व हो गए हैं. ओवरऑल देखें तो ये टाइगर रिजर्व 78,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले हैं. मतलब ये भारत के भौगोलिक क्षेत्रफल का 2.30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है.